Nios Hindustani Sangeet Solved (242) Tutor Mark Assignment (TMA) 2024-25
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(242)
Tutor Mark Assignment (TMA) 2024-25
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mŸkj % दो ताल जिनमें समान मात्रा संख्या होती है:
1. त्रिताल अथवा तीनताल :
त्रिताल या तीनताल हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का एक प्रमुख ताल है। इसमें 16 मात्राएँ होती हैं। इसे चार विभाजनों में बांटा जाता है, और हर विभाजन में 4-4 मात्राएँ होती हैं। त्रिताल में चार ताली और एक खाली होती है।
2. झपताल:
झपताल भी एक लोकप्रिय ताल है, जिसमें 10 मात्राएँ होती हैं। इसे तीन विभाजनों में बांटा जाता है: पहला विभाजन 2 मात्राओं का, दूसरा 3 मात्राओं का, और तीसरा 2 मात्राओं का होता है। झपताल में दो तालियाँ और एक खाली होती है।
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mŸkj % नाद के बारे में यह कहा जाता है कि यह भौतिक वस्तुओं से उत्पन्न होता है और भौतिक माध्यम के द्वारा कान तक पहुँचता है। इसका तात्पर्य यह है कि जब कोई वस्तु कंपन करती है, जैसे वाद्य यंत्र या कोई और ध्वनि उत्पन्न करने वाली वस्तु, तो वह ध्वनि तरंगों को उत्पन्न करती है। ये ध्वनि तरंगें वायु, जल या ठोस माध्यमों के जरिये कान तक पहुँचती हैं। कान में उपस्थित श्रवण तंत्रिका इन ध्वनि तरंगों को विद्युत संकेतों में परिवर्तित करती है, जिन्हें मस्तिष्क सुनने योग्य ध्वनि के रूप में पहचानता है। इस प्रकार, नाद का अस्तित्व भौतिक वस्तुओं और माध्यमों पर आधारित होता है, जिनके बिना ध्वनि का अनुभव संभव नहीं है।
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mŸkj % शुद्ध स्वर और तीव्र स्वर हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के महत्वपूर्ण भाग हैं:
1. शुद्ध स्वर :
शुद्ध स्वर वे स्वर होते हैं जो सप्तक के स्वाभाविक और मौलिक स्वर होते हैं। ये सात स्वरों में शामिल होते हैं: सा, रे, ग, म, प, ध, नि। शुद्ध स्वरों का कोई विकार नहीं होता है और ये स्वरों का मूल रूप होते हैं।
2. तीव्र स्वर :
तीव्र स्वर वह स्वर होता है जिसे शुद्ध स्वर की तुलना में एक श्रुति (संगीत में एक छोटी इकाई) ऊपर गाया या बजाया जाता है। केवल "म" स्वर को ही तीव्र किया जाता है, जिसे "तीव्र म" कहा जाता है। तीव्र स्वर अन्य स्वरों की तुलना में उच्च ध्वनि उत्पन्न करता है।
संबंध :
शुद्ध और तीव्र स्वरों का मुख्य अंतर उनकी ध्वनि की ऊँचाई में होता है। शुद्ध स्वर मौलिक होते हैं, जबकि तीव्र स्वर शुद्ध स्वर के एक श्रुति ऊँचे स्वर होते हैं।
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mŸkj % हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में लय का महत्वपूर्ण स्थान है। लय का मतलब संगीत में गति या ताल से होता है, और यह समय की माप को दर्शाता है। हिंदुस्तानी संगीत में लय के मुख्यतः तीन प्रकार होते हैं:
1. विलंबित लय :
यह लय धीमी गति की होती है। इसे बहुत धीरे-धीरे गाया या बजाया जाता है। विलंबित लय का प्रयोग आमतौर पर खयाल गायकी के प्रारंभिक हिस्से में किया जाता है, जिससे कलाकार को राग की बारीकियों को विस्तृत रूप से प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है।
2. मध्यम लय
:
यह लय मध्यम गति की होती है, न तो बहुत तेज और न ही बहुत धीमी। यह लय गायन और वादन में राग के बीच वाले भाग में अधिकतर उपयोग की जाती है, जहां रचना या बंदिश को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया जाता है।
3. द्रुत लय :
द्रुत लय तेज गति की होती है। इसे अधिक गति से गाया या बजाया जाता है। यह लय रचना या प्रदर्शन के अंतिम चरण में होती है, जहाँ कलाकार अपनी कला की चुस्ती और ताल का प्रदर्शन करते हैं।
निष्कर्ष:
लय संगीत के ताल और गति को नियंत्रित करती है और इसके बिना संगीत का कोई स्वरूप नहीं हो सकता। हर लय का अपना महत्व और भूमिका होती है, और ये संगीत के विभिन्न चरणों में उपयोग की जाती हैं।
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mŸkj % भारत में संगीत शिक्षा की परंपरा सदियों से मौखिक रूप में चलती आ रही है, जिसे गुरू-शिष्य परंपरा के नाम से जाना जाता है। इस परंपरा में गुरु अपने शिष्य को संगीत की शिक्षा मौखिक रूप से प्रदान करता है, जिसमें शिष्य गुरु के मुख से सुनकर, देखकर और अनुसरण करके संगीत की बारीकियों को सीखता है। यह परंपरा लिखित पुस्तकों या किसी औपचारिक शिक्षा प्रणाली पर आधारित नहीं होती थी, बल्कि गुरु के व्यक्तिगत अनुभव और ज्ञान पर आधारित होती थी।
गुरु-शिष्य परंपरा में शिष्य को गुरु के सान्निध्य में रहकर निरंतर अभ्यास करना पड़ता है, और इस दौरान गुरु शिष्य के भीतर संगीत के प्रति निष्ठा, अनुशासन और समर्पण को विकसित करता है। यह एक प्रकार का संवादमूलक शिक्षा का तरीका था, जहाँ शिष्य को गुरु से केवल संगीत ही नहीं, बल्कि जीवन के अन्य गुण भी सीखने को मिलते थे।
इस परंपरा में गुरु का स्थान बहुत ऊँचा होता था, क्योंकि वही ज्ञान के वास्तविक स्रोत होते थे। इस मौखिक शिक्षा पद्धति के कारण संगीत की विद्या पीढ़ी दर पीढ़ी बिना लिखित प्रमाण के भी सुरक्षित रही, और शिष्य गुरु के आशीर्वाद से आगे चलकर खुद गुरु बनते थे।
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mŸkj % हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में ताल का विशेष महत्व है, क्योंकि यह किसी रचना की लय और गति को नियंत्रित करता है। ताल के बिना संगीत का कोई भी राग या बंदिश सही ढंग से प्रस्तुत नहीं की जा सकती। ताल न केवल गायन में, बल्कि वादन और नृत्य में भी उपयोग होता है। यहां तीन प्रमुख तालों – तीनताल, झपताल, और एकताल – की जानकारी दी गई है।
जिनकी मात्रा और बोल तालिका के रूप में दिए गए हैं :
ताल
का
नाम |
मात्रा (Beats) |
बोल |
तीनताल |
16 |
धा
धिं
धिं
धा,
धा
धिं
धिं
धा,
ता
तिं
तिं
ता,
ता
धिं
धिं
ता |
झपताल |
10 |
धा
धिं
ना,
धा
तिं
ना,
ता
धिं
धा,
धा
तिं
ना |
एकताल |
12 |
धिं
धिं
ता
धा,
धिं
धिं
ता
धा,
ता
तिं
ता
ता |
1.
तीनताल: यह हिंदुस्तानी संगीत का सबसे प्रचलित ताल है, जिसमें 16 मात्राएँ होती हैं। इसे चार विभाजनों में बांटा गया है, प्रत्येक में चार मात्राएँ होती हैं। इसके बोल हैं: धा धिं धिं धा, धा धिं धिं धा, ता तिं तिं ता, ता धिं धिं ता। तीनताल का उपयोग प्रायः सभी प्रकार के शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत में किया जाता है।
2.
झपताल: इसमें 10 मात्राएँ होती हैं और इसके चार विभाजन होते हैं: 2, 3, 2, 3 मात्राओं में। इसके बोल हैं: धा धिं ना, धा तिं ना, ता धिं धा, धा तिं ना। यह ताल विलंबित ख्याल, तराना और ठुमरी में प्रचलित है।
3.
एकताल: यह 12 मात्राओं का ताल है, जिसमें बोल होते हैं: धिं धिं ता धा, धिं धिं ता धा, ता तिं ता ता। एकताल का उपयोग धीमी बंदिशों और ध्रुपद शैली में किया जाता है।
तालों
की
यह
विविधता हिंदुस्तानी संगीत को संरचना और अनुशासन प्रदान करती है, जिससे संगीतकार और श्रोता दोनों के लिए संगीत अधिक रोचक और सुंदर हो जाता है।
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